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बात रिश्तों की

August 23, 2012

जो नहीं समझे कभी, बात रिश्तों की
वो ही क्यूँ करते हैं ,अक्सर बात रिश्तों की!
जो दिल के थे वो निभ गए, जो खून के थे निभा दिए,
दुनियादारी सी लगे , हर जात रिश्तों की!
फूल से खिलकर कभी, जज्बात को महका गए
कभी जनाजों सी लगी,बारात रिश्तों की!
इस हाथ दे, उस हाथ ले, फिर मैं कहाँ ओ तुम कहाँ
रह गयी है अब यही, औकात रिश्तों की!
फूल लेकर सबसे पहले, आये वो ही कब्र पर
जिनके हाथों से गिरी है, लाश रिश्तों की!
जख्म दिल पर और कुछ यादें, बहुत ही तल्ख़ सी
हम को तो ये ही मिली सौगात रिश्तों की!
जो नहीं समझे कभी भी बात रिश्तों की,
वो ही क्यूँ  करते है अक्सर बात रिश्तों की !!!!

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